खरगोन. मध्य प्रदेश ही नहीं पूरे देश में सड़कों पर निराश्रित गायों की सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा है. हर साल सैकड़ों गायें सड़क दुर्घटना, एसिडोसिस या फिर ज्यादा मात्रा में पॉलीथिन खाने से मौत का शिकार हो जाती हैं. अकेले खरगोन में ही प्रतिवर्ष लगभग 10 से ज्यादा गायों की मौत सिर्फ पॉलीथिन खाने से हो जाती है. शुक्रवार 6 दिसंबर को भी ऐसा ही एक मामला मंडलेश्वर से सामने आया था. हालांकि, समय पर इलाज मिलने से जान बच गई.
ऑपरेशन करने पर गाय के पेट से करीब 8 किलो पॉलीथिन डॉक्टरों ने निकाली है. वेटनरी असिस्टेंट सर्जन डॉ. बीएस पटेल ने लोकल 18 को बताया कि बड़वाह रोड पर गाय का ऑपरेशन किया, जिसके पेट से करीब 8 किलो पॉलीथिन निकली. अगर उस दिन ऑपरेशन करके पॉलीथिन नहीं निकालते तो गाय की मौत हो जाती. इसमें महेश्वर की वेटनरी डॉ. वर्षा बुंदेला और पशु चिकित्सा वाहन 1962 टीम ने सहायता की. अब गाय पहले से बेहतर है.
ऑपरेशन ही एकमात्र इलाज
डॉ. बीएस पटेल के मुताबिक, निराश्रित गाय खाने की तलाश में कई बार पॉलीथिन, रबर बैंड, नायलॉन के वायर आदि खा जाती हैं. गाय के लिए इन्हें पचाना संभव नहीं है. थोड़ी-थोड़ी मात्रा में पॉलीथिन पेट में जमा होती रहती है और फिर यह एक गंभीर बीमारी का रूप ले लेती है. जब स्थिति गंभीर होती है तो तीन दिन तक गाय खाना पीना छोड़ देती है. इस ऑपरेशन से पॉलीथिन निकाली जाए तो गाय की जान बच जाती है. पॉलीथिन निकालने के लिए भी गाय के पेट को फाड़ना पड़ता है.
पॉलीथिन से बीमारी के लक्षण
सामान्य तौर पर गाय स्वस्थ नजर आती है. लेकिन, धीरे-धीरे ये पॉलीथिन जहर का रूप लेने लगती है. एक समय अवधि बीतने के बाद गाय का बार-बार पेट फूलना और पतले दस्त की समस्या बारी-बारी होने लगती है. खाना बंद हो जाता है. कम मात्रा में पॉलीथिन खाने जाने पर 4 साल तक समस्या खतरनाक स्थिति में नहीं आती. लेकिन, ज्यादा मात्रा में पॉलीथिन खाने से और समय पर उपचार नहीं मिलने से गाय की जल्दी मौत हो जाती है.
पॉलीथिन गठान बांधकर न फेंकें
डॉक्टरों के अनुसार, गायों को पॉलीथिन खाने से रोकने के लिए लोगों को जागरूक होना पड़ेगा. दूध की थैली या होटल से खाना पैक करके लाई गई पॉलीथिन को खुला छोड़ दें, गठान बांधकर नहीं फेंके. क्योंकि, पशु खाने की तलाश में पन्नी को निगल लेते हैं. घर से निकलने वाले खाने को भी पॉलीथिन में भरकर न फेंकें. ज्यादातर पशु शादियों के सीजन में ही पॉलीथिन का सेवन करते हैं.