मिथिलेश कुमार सिंह

चकाचौंध की इस दौड़ में जब कभी थोड़ा सा अंधेरा आता है, थोड़े से कदम डगमगा जाते हैं, तब उस डगमगाते
कदम को किस प्रकार से हैंडल किया जाए इसकी कला, भला कितने लोगों को आती है?
कहना बड़ा आसान है कि प्यार में धोखा खाना के कारण, लव जिहाद के कारण कोई व्यक्ति आत्महत्या कर
लेता है लेकिन इसके पीछे हम मूल सवालों को दफन कर देते हैं!

वास्तविकता तो ये है कि हम उन सवालों पर चर्चा भी नहीं करना चाहते हैं, वह चाहे परिवार के लोग हों,
समाज के लोग हों या फिर कोई दार्शनिक ही क्यों ना हो। सभी इन मूल सवालों से भागना चाहते हैं.
आप किसी भी साइकोलॉजिस्ट से, डॉक्टर से या इंटेलेक्चुअल व्यक्ति से पूछ लीजिए और जरा इन प्रॉब्लम्स की
गहराई में जाइए तो आपको पता चलेगा कि इसके पीछे दबाव को हैंडल नहीं कर पाना ही सबसे बड़ा कारण है।
खासकर ग्लैमर वर्ल्ड में (Tunisha suicide case) जब कोई सफल होता है तो उसके मन मस्तिष्क में किंचित
भी यह ख्याल नहीं आता है कि, असफलता को वह कैसे हैंडल करेगा! असफलता चाहे आर्थिक एंगल से कह
लीजिए, चाहे हेल्थ का एंगल कह लीजिए, ऐसी अवस्था में जब भी थोड़ा झटका लगता है, तो उसे बर्दाश्त कर
पाना मुश्किल होता है। कुछ समय पहले हरियाणा में मशहूर गीतिका और गोपाल कांडा का मामला आया था.
 जरा सोचिए, एक आम

लड़की अगर बीएमडब्ल्यू (BMW) में चल रही है और लाखों पैसे अपनी लाइफ स्टाइल (luxury lifestyle) पर
लुटा रही है तो उसके परिवार वाले उससे यह सवाल क्यों नहीं पूछते हैं कि वह पैसा कहां से आ रहा है?
सच तो यह है कि अधिकांश परिवार के लोग भी आम खाने से मतलब रखते हैं, पेड़ गिनने से नहीं। जब तक
कोई गाय दूध दे रही है, तो कैसे दे रही है, कैसे उससे लाभ मिल रहा है, इसका संज्ञान बहुत कम लोग ही ले
पाते हैं। यहाँ कहने का मतलब यह नहीं है कि हर व्यक्ति ही असंवेदनशील है बल्कि सिस्टम ही कुछ ऐसा बन
गया है, कुछ परवरिश ही ऐसी हो रही है कि लोग अपनों से भी सवाल-जवाब नहीं कर पाते हैं।
सच्चाई से देखें तो आप यह सब एक या दो दिन में नहीं कर सकते बल्कि आप यह तब कर सकते हैं जब
सवाल जवाब करने की प्रक्रिया शुरू से ही अपनाई गई हो। जब आप बचपन से ही बच्चों से सवाल पूछते हैं कि,
उसके बैग में एक एक्स्ट्रा पेंसिल क्यों है और वह जवाब देने को तैयार होता है, तभी आप उससे उसकी
युवावस्था में भी सवाल कर सकते हैं।

किंतु सवाल करने का जोखिम कौन ले भला? खुद से सवाल करने के बाद उत्तर देने का जोखिम कौन ले? और
यही वह चीजें हैं जो मूल प्रश्न हैं. वस्तुतः यह बच्चों की परवरिश, समाज के स्ट्रक्चर (family, religion, law,
economy, and class) से जुड़ा हुआ प्रश्न है।
इसे लेकर जागरूकता अभियान फैलाए जाने की जरूरत है ताकि और बच्चे दबाव में न आएं, और अगर किसी
को समस्या है तो उस समस्या को सुलझाने के लिए समाज को आगे आना चाहिए।
हो सकता है कि कुछ मामलों में लव जिहाद भी एक कारण रहा हो, कुछ मामलों में ब्रेकअप भी एक कारण रहा
हो, लेकिन इस के शोर में मूल प्रश्न को दबा दिया जाना कहां तक न्यायोचित है? स्वयं ही विचार
कीजिए। (युवराज)

Previous articleराजनीतिक उथल – पुथल से भरा रहा यह वर्ष !
Next articleनए साल के जश्न में डूबा देश

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here