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अनाजों के एमएसपी, मंडी में बिचौलियों की भूमिका के बीच पिसते किसानों के संघर्ष की कहानी है  दिनेशलाल अभिनीत ‘फ़सल’

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भारत सरकार की नई स्किम के तहत जो प्रत्येक किसानों के खाते में हर चार महीने के अंतराल पर ₹ 2000 रुपये की तीन किस्तों के रूप में ₹ 6000 साल भर में डाली जा रही है क्या वह रकम किसानों की स्थिति को सुधारने के लिए पर्याप्त है ? क्या आज की तारीख़ में मंडियों में जो बिचौलिए किसानों की फसल के दाम औने पौने लगाकर अपनी जेबें भर रहे हैं उसपर सरकार का कोई अंकुश काम कर रहा है ? क्या किसानों को उनके फसल की वास्तविक कीमत उनको मिल रही है ? ऐसी कौन सी योजना है जो आगामी कुछ सालों में किसानों की आय दुगनी कर किसानों की स्थिति को सुदृढ कर सकती है ? भारत का किसान अन्नदाता है और उसके उपजाने के बाद ही किसी नेता, अभिनेता, मंत्री, संतरी अधिकारी और व्यापारी के पेट मे अन्न जाता है तो आज की तारीख में इसी अन्नदाता के तन पर वस्त्र और सर पर छत की कमी क्यों है ? ऐसे ही ना जाने कितने अनगिनत सवालों की फेहरिस्त लिए हुए भोजपुरी के मल्टीस्टार दिनेशलाल यादव निरहुआ की फ़िल्म फसल का ट्रेलर वर्ल्डवाइड रिकॉर्ड्स भोजपुरी के यूट्यूब चैनल पर रिलीज़ हुआ है। यह फ़िल्म आज के तारीख में किसानों की वास्तविक स्थिति , किसानों के परिवार के ऊपर पड़ने वाली प्राकृतिक मार और उससे संघर्ष की गाथा के रूप में आगामी कुछ सालों तक याद की जाएगी। आपको याद होगा कि विगत साल दिल्ली की सरहद पर बैठकर इसी किसान हित के मुद्दे पर कुछ लोग सरकार और सिस्टम से टकरा गए थे, उनके दबाव में सरकार ने कुछ बिलों को वापस भी ले लिया था, असल मे इस फसल के ट्रेलर को देखकर तो यही लगता है कि वे किसानों के हितैषी नहीं बल्कि किसानों के दुश्मनों के नुमाइंदे थे जिन्होंने सरकार को उनके हक में फैंसला करने के लिए मजबूर कर दिया ताकि आगामी कुछ सालों तक यूँ हीं किसानो पर जुल्मों सितम की ये कहानी बदस्तूर जारी रह सके। किसानों के हक़ में फैसला ना हो सके, किसानों की स्थिति बेहतर ना हो सके। फ़िल्म का ट्रेलर जब इतना धांसू है तो फ़िल्म की परिकल्पना आप स्वयं कर सकते हैं।
निर्माता प्रेम राय के श्रेयश फिल्म्स के बैनर तले बनी फिल्म फसल के लेखक निर्देशक हैं पराग पाटिल, जिन्होंने इस फसल और उसके उत्पादक के संघर्ष का ताना बाना बुना है। ट्रेलर को देखने के बाद यही लगता है कि पराग पाटिल ने इस फ़िल्म को बनाने में अपना सम्पूर्ण निर्देशकीय कौशल को झोंक दिया है ताकि एक बेहतर फ़िल्म बन सके। निर्देशक ने फ़िल्म के विषय को विषयांतर नहीं होने दिया है जो इस फ़िल्म का प्लस प्वॉइंट साबित हो सकती है।
फ़िल्म फसल में दिनेश लाल यादव के साथ आम्रपाली दुबे, संजय पाण्डेय , विनीत विशाल, अयाज खान, अरुणा गिरी, और तृषा ( छोटी ) ने अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश किया है । एक किसान के तौर पर निरहुआ ने एक मील का पत्थर साबित करने वाला किरदार निभाया है , हर एक फ्रेम में उनका रिएक्शन , घटनाओं के अनुरूप उसका बदलता एक्सप्रेशन और उसका सामने वाले पर पड़ने वाले प्रभाव सहित हर एक सीन की बारीकियों से परिचय कराते हुए निरहुआ ने इस फ़िल्म में जान फूंक दिया है। उन्होंने अपने अभिनय की बारीकियों को इतना बखूबी निखारा है कि जिसके कारण उन्हें आज भी भोजपुरी फ़िल्म जगत का मल्टीस्टार कहा जाता है। उन्होंने अपने अभिनय के दम पर मिले तमगे को इस फ़िल्म में और चमकाने का काम किया है। दिनेशलाल के साथ आम्रपाली दुबे ने भी इस फ़िल्म में एक आदर्श पत्नी का किरदार काफी संजीदगी से निभाया है। उन्होंने दिखाया है कि एक पति के सुख दुःख की सहभागी होने के नाते पत्नी का क्या क्या कर्त्तव्य हो सकता है। उन्होंने अपने अभिनय कौशल को इस फ़िल्म में और भी निखारा है। ट्रेलर के शुरुआत में ही गाने पर नृत्य और उसके बाद के रिएक्शन तो कमाल का है। बाकी कलाकारों में संजय पांडेय हर बार की तरह इस किरदार में भी अपनेआप को फिट कर लिए हैं, अभिनय की कसौटी पर संजय पांडेय भोजपुरी फ़िल्म इंडस्ट्री में एक मिसाल के तौर पर ही याद किये जाएंगे । छोटी बच्ची के रूप में तृषा ने भी सधा हुआ अभिनय किया है, उसको अभी से ही कैमरे के सामने फोकस देना और सम्वाद की प्रस्तुति देना जैसी बारीकियां समझना अच्छा फील दे रहा है।
ओम झा और आर्या शर्मा के प्रयासों से फ़िल्म फसल में गीत संगीत भी जबरदस्त बन पड़ा है। ट्रेलर के शुरुआत में ही इस गीत संगीत ने जो शमां बांधने का काम किया वो अंत तक कानों में गुंजायमान रहा है। इस फ़िल्म में गीत के बोल भी शानदार लिखे गए हैं जिन्हें शब्दों से सजाया है प्यारेलाल यादव, अरबिंद तिवारी, विजय चौहान और विमल बावरा ने, जिन्हें सुरों साधा है नीलकमल सिंह, प्रिया सिंह राजपूत, ममता राउत, और शिल्पी राज ने। फ़िल्म फसल के सह निर्माता हैं सतीश आसवानी। फाइट मास्टर हैं हीरा यादव जिन्होंने फ़िल्म में हर एक एक्शन सीन को घटना के अनुरूप ही रखा है। किसी किसान को आप हवा में उड़कर मार करते हुए तो देखना पसंद भी नहीं करेंगे और यही बारीकियां आपको एक स्तरीय तकनीशियन बनाती है । हीरा यादव ने इन बातों को ध्यान में रखा है । फ़िल्म के एडिटर हैं सन्तोष हरावड़े व प्रचार प्रसार के प्रभारी हैं संजय भूषण पटियाला।

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