सिलीगुड़ी 31 दिसंबर : मानव उत्थान सेवा समिति के तत्वावधान में स्थानीय सालूगाड़ा के निकट मझुआ ग्राम में आयोजित दो दिवसीय सद्भावना सम्मेलन के प्रथम दिन मानव धर्म के प्रणेता सद्गुरु श्री सतपाल जी महाराज ने देश–विदेश से पधारे संत–महात्माओं, भक्तों एवं श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि संसार को बदलने से पहले स्वयं के भीतर परिवर्तन आवश्यक है। व्यक्ति के हृदय में आया परिवर्तन ही समाज, राष्ट्र और अंततः विश्व कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है।

इस अवसर पर सद्गुरु श्री सतपाल जी महाराज ने नववर्ष 2026 के उपलक्ष्य में देश-विदेश में रह रहे समस्त देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं देते हुए कहा कि नया वर्ष मानवता, शांति, सद्भावना और नैतिक मूल्यों के नव जागरण का वर्ष बने। उन्होंने कामना की कि नववर्ष प्रत्येक परिवार के जीवन में सुख, स्वास्थ्य, समृद्धि और आत्मिक उन्नति लेकर आए।
श्री हंसी जी महाराज की 125वीं जयंती के पावन अवसर पर उनके आध्यात्मिक, सामाजिक एवं मानव कल्याणकारी विचारों का स्मरण करते हुए श्री गुरुमहाराज जी ने कहा कि संतों की ज्ञान केवल सुनने की वस्तु नहीं, बल्कि जीवन में उतारने की साधना हैं। इन्हीं मूल्यों को आत्मसात करना गुरुओं के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है।

श्री सतपाल जी महाराज ने ऐतिहासिक जन-जागरण पदयात्रा का उल्लेख करते हुए बताया कि बागडोगरा से प्रारंभ हुई 14 दिवसीय यह पदयात्रा लगभग 250 किलोमीटर की दूरी पैदल तय करते हुए दार्जिलिंग के मार्ग से गंगटोक पहुंची थी। इस पदयात्रा का उद्देश्य सामाजिक चेतना, राष्ट्रीय एकता और सांस्कृतिक समरसता का विस्तार था। उन्होंने विशेष रूप से नेपाली भाषा को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान दिलाने के लिए किए गए इस जन-जागरण अभियान को ऐतिहासिक उपलब्धि बताया और इसमें सहभागी सभी साथियों के योगदान की सराहना की।

सम्मेलन के दौरान मानव सेवा दल की परेड की प्रशंसा करते हुए श्री गुरुमहाराज जी ने कहा कि मानव सेवा दल के सदस्यों एवं सेविकाओं ने अनुशासन, समर्पण और एकता का जीवंत उदाहरण प्रस्तुत किया। साथ ही विभिन्न तहसीलों से आए कलाकारों द्वारा प्रस्तुत झांकी, नृत्य, बैंड और सांस्कृतिक कार्यक्रमों को उन्होंने भावपूर्ण साधना का स्वरूप बताया।
देश और समाज की वर्तमान परिस्थितियों पर विचार व्यक्त करते हुए श्री गुरुमहाराज जी ने कहा कि नववर्ष का संदेश “नव जीवन, नव उत्कर्ष” होना चाहिए। राष्ट्र को सशक्त बनाने के लिए आंतरिक आत्मिक शक्ति का जागरण अनिवार्य है। गीता के प्रसंग का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि जैसे अर्जुन मोहग्रस्त हुआ, वैसे ही आज समाज भी दुविधा में है, और ऐसे समय में आध्यात्मिक ज्ञान ही कर्तव्य पथ का मार्गदर्शन करता है। जब-जब धर्म की हानि होती है, तब-तब अधर्म के नाश हेतु शक्ति का उदय होता है।

उन्होंने कहा कि परिवार से लेकर समाज, नगर, जिला और राष्ट्र—सभी स्तरों पर सद्भावना का विस्तार आवश्यक है। सद्भावना से ही विश्व कल्याण संभव है। इसी भाव के साथ उन्होंने संदेश दिया— “धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो और प्राणी मात्र में सद्भावना हो।”

उल्लेखनीय है कि अपराह्न सद्गुरु श्री सतपाल जी महाराज ने मानव सेवा दल की परेड का निरीक्षण किया। इसके उपरांत सांस्कृतिक प्रस्तुतियों ने सम्मेलन की भव्यता को और अधिक गरिमा प्रदान की।

सद्भावना सम्मेलन का प्रथम दिन आध्यात्मिक चेतना, राष्ट्रीय एकता और मानव मूल्यों के सशक्त संदेश के साथ संपन्न हुआ।

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