(डॉ. सुधाकर आशावादी-विनायक फीचर्स)

स्वस्थ लोकतंत्र जियो और जीने दो की अवधारणा में विश्वास करता है। वह चाहता है कि उसका पड़ोस भी खुशहाल रहे, किन्तु किसी भी राष्ट्र का प्रत्येक नागरिक स्वस्थ चिंतक हो, ऐसा कहना उचित नहीं कहा जा सकता। वैचारिक दृष्टि से हर किसी की मानसिकता राष्ट्रवाद के प्रति समर्पित नहीं होती। बहुधा अपने देश में ही बुद्धिजीवी प्रबुद्ध कहे जाने वाले विचारकों के बयान सुनें, तो लगता है, कि बिना किसी आधार के अतार्किक बयान देने में भारतीय मुंगेरीलाल अग्रणी रहना चाहते हैं।

विचारकों के भी गुट बन गए हैं, कुछ विचारकों का कार्य ही राष्ट्रविरोधी तत्वों के समर्थन में खड़े रहना है तथा भारत की विकास गति को नकारना है, साथ ही अराजक और राष्ट्र विरोधी तत्वों को भारत में उपद्रव मचाने के लिए प्रेरित करना है।

विगत वर्ष बांग्लादेश में शेख हसीना को अपदस्थ करके वहाँ के हिन्दू मंदिरों को जिस प्रकार से निशाना बनाया गया तथा हिन्दुओं की हत्याएं की गई, उस समय भारत में अराजक तत्वों के समर्थकों ने बंगलादेश के विरूद्ध कोई आवाज नहीं उठाई और न ही मानवता के विरूद्ध किये गए कृत्यों का कोई विरोध किया। ऐसे तत्व भारत में बांग्लादेशी घुसपैठियों के विरुद्ध भी एक शब्द नहीं बोलते। बांग्लादेशी घुसपैठियों के समर्थन में उनकी संवेदनाएं अवश्य प्रकट होती रही हैं।
बहरहाल अब यह सामान्य है कि जब जब विदेशी धरती पर हिन्दुओं के प्रति दोहरा व्यवहार किया जाता है तथा हिन्दू धर्मस्थलों पर हमले होते हैं, तब तब भारत में रहने वाले अराजक तत्व चुप्पी साध लेते हैं तथा यही कामना करते हैं कि भारत में भी अराजकता फैले। फ़िलहाल भारत के छोटे भाई कहे जाने वाले नेपाल में जिस प्रकार से उपद्रव हुए तथा वहाँ के सत्ताधीशों के विरुद्ध जनआक्रोश देखने को मिला, उससे भी भारत में रहने वाले सत्ता विरोधी अराजक तत्व काफी प्रसन्न हैं। सोशल मीडिया पर उनकी टिप्पणियाँ स्पष्ट संकेत दे रही हैं, कि भारत में अराजकता फ़ैलाने में विफल और हताश लोग भारत में भी नेपाल जैसी अराजकता देखना चाहते है।

भारत में रहने वाले ये अराजक तत्व खुशहाली इंडेक्स में नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान , श्रीलंका, म्यांमार और अफगानिस्तान को भारत की अपेक्षा संपन्न सिद्ध करके कई बार भारत को कमतर घोषित कर चुके हैं। इन पड़ोसी देशों में महँगाई, भुखमरी और अराजकता भारतीय अराजक तत्वों के लिए कभी चिंतन का विषय नहीं रही। ऐसे में नेपाल में युवाओं द्वारा किए गए सत्ता विरोध को देखकर अराजक तत्व यह विमर्श प्रसारित करने का प्रयास कर रहे हैं, कि भारत में भी नेपाल जैसे प्रयास हो सकते हैं। मेरा मानना है कि अराजक कौवों के कोसने से किसी का भी अनिष्ट नहीं हो सकता। भारत का आम नागरिक सत्ता से संतुष्ट है। बेरोजगारी अंतरराष्ट्रीय समस्या है। राजनीति में भ्रष्टाचारियों के दिन लद चुके हैं। वंशवादी राजनीति को देश ने अस्वीकार कर दिया है। ऐसे में भारत में अराजक तत्वों के मंसूबे पूरे होने के आसार नजर नहीं आते।

हताश विपक्ष भी अपने राजनीतिक अस्तित्व को बचाने हेतु संघर्ष कर रहा है। अपनी प्रासंगिकता खो चुके राजनीतिक दल और उनके स्वयंभू नेता बार बार जनता की अदालत में जाते हैं, भिन्न भिन्न नारे लगाते हुए पदयात्राएं करने का नाटक रचते हैं, किन्तु निष्कर्ष में अपनी दुर्गति ही कराते हैं।

कहने का आशय यही है कि भारत में अराजकता फ़ैलाने के लिए भले ही देशी विदेशी शक्तियां सत्ता विरोधी विपक्ष के साथ मिलकर कितने ही षड्यंत्र रच लें। भारतीय जनमानस की राष्ट्रवादी विचारधारा के सम्मुख भारत में अराजकता फ़ैलाने का स्वप्न देखने वाले तत्वों के मंसूबे कभी सफल नहीं होंगे। (विनायक फीचर्स)

डॉ. सुधाकर आशावादी

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