(विजय कुमार शर्मा-विभूति फीचर्स)

दशहरा केवल रावण दहन का पर्व नहीं, बल्कि यह अपने भीतर छिपे बुरे गुणों को पहचानने और उन्हें मिटाने का अवसर भी है। यह त्यौहार हमें याद दिलाता है कि जैसे भगवान राम ने असत्य पर विजय पाई, वैसे ही हम भी अपने जीवन के संकटों पर काबू पा सकते हैं। इसके लिए हमें कुछ सरल सूत्र अपनाने होंगे, जो हमारे जीवन को सहज, सुंदर और सफल बना देंगे।

1. अहंकार का दहन करें

दशहरा हमें यह सिखाता है कि रावण जैसा महान ज्ञानी और शक्तिशाली व्यक्ति भी केवल अहंकार के कारण नष्ट हो गया। जीवन में यदि हम अभिमान को पालते हैं तो वह धीरे-धीरे रिश्तों को तोड़ता है और समाज से दूर कर देता है। अहंकार हमें सच्चे मित्रों और ईश्वर की कृपा से भी वंचित कर देता है। इसलिए इस पर्व पर संकल्प लें कि भीतर छिपे अहंकार, क्रोध और ईर्ष्या को जलाएँ और विनम्रता को अपनाएँ। विनम्र व्यक्ति ही सबका प्रिय बनता है और हर संकट को सहजता से पार कर लेता है।

2. सत्य का साथ दें

राम की विजय का सबसे बड़ा आधार सत्य था। चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी विपरीत क्यों न हों, सत्य का मार्ग कभी छोड़ना नहीं चाहिए। असत्य से मिलने वाली सफलता क्षणिक होती है और अंततः विनाश का कारण बनती है। सत्य का पालन करने से विश्वास और प्रतिष्ठा मिलती है। यह जीवन में ऐसे कवच का काम करता है, जो हमें हर संकट से सुरक्षित रखता है। इसलिए दशहरा के दिन संकल्प लें कि जीवन के हर छोटे-बड़े कार्य में सत्य और ईमानदारी का साथ देंगे।

3. संयम साधें

मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु उसका अनियंत्रित मन और वाणी है। यदि हम संयम नहीं रखते तो क्रोध और आवेग के कारण गलत निर्णय ले बैठते हैं। दशहरा हमें याद दिलाता है कि संयम ही जीवन की सबसे बड़ी शक्ति है। भोजन, व्यवहार, बोलचाल और इच्छाओं पर नियंत्रण रखने वाला व्यक्ति कभी संकटों में नहीं फँसता। संयमित जीवन से न केवल आत्मबल बढ़ता है बल्कि परिवार और समाज में भी सम्मान मिलता है। इस पर्व पर संकल्प लें कि संयम को जीवन का अभिन्न हिस्सा बनाएँगे।

4. धर्म के मार्ग पर चलें

धर्म का अर्थ केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है। धर्म का असली स्वरूप है – कर्तव्य, न्याय, सत्य और करुणा। दशहरा हमें प्रेरित करता है कि जीवन की हर परिस्थिति में धर्म का पालन करें। जब हम अपने कर्तव्यों का ईमानदारी से निर्वाह करते हैं, तो संकट स्वतः दूर हो जाते हैं। धर्म मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति कभी पराजित नहीं होता, भले ही अस्थायी कठिनाइयाँ आएँ। भगवान राम ने हर परिस्थिति में धर्म का पालन कर यह उदाहरण प्रस्तुत किया।

5. सेवा का भाव रखें

सेवा केवल दान देने तक सीमित नहीं है, बल्कि दूसरों की पीड़ा समझकर उनकी मदद करना ही सच्ची सेवा है। निःस्वार्थ सेवा करने से मन को शांति मिलती है और समाज में सम्मान भी। सेवा करने वाले व्यक्ति के जीवन में संकट लंबे समय तक टिक नहीं पाते क्योंकि उसके अच्छे कर्म ही उसकी रक्षा करते हैं। दशहरा का यह संदेश हमें याद दिलाता है कि जरूरतमंदों, बीमारों, बुजुर्गों और बच्चों की सेवा करके हम न केवल पुण्य अर्जित करते हैं, बल्कि अपने जीवन को भी सार्थक बनाते हैं।

6. शक्ति और करुणा में संतुलन

जीवन में शक्ति होना जरूरी है, परंतु उसका उपयोग दूसरों को दबाने के लिए नहीं बल्कि रक्षा और सहयोग के लिए होना चाहिए। रावण ने शक्ति का दुरुपयोग किया और अंततः नष्ट हुआ, जबकि भगवान राम ने करुणा और धर्म के लिए शक्ति का प्रयोग किया और आदर्श बने। दशहरा हमें यही शिक्षा देता है कि शक्ति और करुणा का संतुलन ही संकट हरने का सूत्र है। यदि हम शक्तिशाली होकर भी दयालु बने रहें तो समाज हमें आदर देता है और संकट हमारे निकट नहीं आ पाते।

7. सद्ग्रंथों का अध्ययन करें

रामायण, महाभारत और गीता जैसे ग्रंथ केवल कथाएँ नहीं, बल्कि जीवन के मार्गदर्शक हैं। इनका अध्ययन करने से हमें संकटों से जूझने की प्रेरणा और समाधान दोनों मिलते हैं। गीता सिखाती है कि कठिनाइयों में धैर्य कैसे बनाए रखें, रामायण हमें मर्यादा और आदर्श का पाठ पढ़ाती है। सद्ग्रंथों से जुड़कर हम न केवल ज्ञान प्राप्त करते हैं बल्कि जीवन में सही दिशा भी पाते हैं। दशहरा पर संकल्प लें कि प्रतिदिन थोड़ा समय सद्ग्रंथों के अध्ययन को देंगे। यही आत्मबल को दृढ़ बनाता है।

8. परिवार में सौहार्द बढ़ाएं

आज के समय में संकट का एक बड़ा कारण परिवारों में टूटन और कलह है। दशहरा का पर्व हमें यह अवसर देता है कि हम अपने परिवारजनों के साथ मिलकर रिश्तों को और प्रगाढ़ करें। संवाद, प्रेम और विश्वास ही रिश्तों की नींव हैं। यदि परिवार में सौहार्द रहेगा तो संकट कभी भी लंबे समय तक नहीं टिक पाएगा। त्योहारों का उद्देश्य केवल उत्सव मनाना नहीं, बल्कि परिवार को एक सूत्र में बांधना भी है। इसलिए दशहरा पर पारिवारिक रिश्तों को नई ऊर्जा देने का संकल्प लें।

9. प्रकृति और पर्यावरण का आदर करें

रावण का विनाश हुआ क्योंकि उसने प्रकृति और धर्म का अनादर किया। आज के समय में पर्यावरण संकट सबसे बड़ा खतरा है। यदि हम प्रकृति का सम्मान करेंगे और उसके संसाधनों का संतुलित उपयोग करेंगे तो आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित भविष्य बना सकेंगे। पेड़ लगाना, जल संरक्षण करना और प्रदूषण कम करना भी हमारे धर्म का हिस्सा है। दशहरा पर संकल्प लें कि हम पर्यावरण का आदर करेंगे और प्रकृति को देवता की तरह पूजकर उसकी रक्षा करेंगे। यही असली विजय है।

10. आत्मचिंतन व साधना करें

संकट तभी बड़ा लगता है जब मन अस्थिर और नकारात्मक हो। आत्मचिंतन और साधना से मन को स्थिर किया जा सकता है। प्रतिदिन कुछ समय ध्यान, प्रार्थना और मौन में बैठकर अपने जीवन का मूल्यांकन करें। इससे हमें अपनी गलतियों का बोध होगा और सुधार का अवसर भी मिलेगा। साधना से आत्मबल और धैर्य बढ़ता है, जो किसी भी कठिनाई को पार करने में सहायक होता है। दशहरा पर यह संकल्प लें कि प्रतिदिन आत्मचिंतन और साधना को जीवन का हिस्सा बनाएँगे।

दशहरा केवल बाहरी रावण को जलाने का नहीं, बल्कि अपने भीतर के रावण को पराजित करने का पर्व है। यदि हम इन दस सूत्रों को जीवन में अपनाएँ, तो हर संकट को अवसर में बदल सकते हैं और सच्चे अर्थों में विजय प्राप्त कर सकते हैं। यह पर्व हमें याद दिलाता है कि धर्म, सत्य, संयम और करुणा से ही स्थायी शांति और सफलता मिलती है। आइए, इस दशहरा हम अपने भीतर छिपी नकारात्मकताओं को जला कर उज्ज्वल और सकारात्मक जीवन की ओर बढ़े। (विभूति फीचर्स)

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