डॉ लीना
हेबीटाट इकोलॉजीकल ट्रस्ट
हम शहरों में बड़ी संख्या में गोवंश को कत्लखानों की ओर जाते देखते हैं, लेकिन यह दुखद सत्य गांवों में भी फैला हुआ है। गांवों से भी बड़ी संख्या में गोवंश या तो कत्लखानों में जा रहा है, या फिर लावारिस भटक रहा है। ऐसा क्यों हो रहा है, यह समझना अत्यंत आवश्यक है।
“गौरी नहीं तो गाय नहीं”
हमारे समाज में प्रकृति, खेती, घर-परिवार, बच्चे और पशुओं को ममत्व से संभालने का कार्य सदियों से महिलाओं द्वारा किया जाता रहा है। दुर्भाग्य से, पुरुषों ने इन कार्यों को अक्सर कम आंका और उन्हें हल्का माना। गांवों में महिलाएं गौपालन का अभिन्न अंग रही हैं। गायों का दैनिक खान-पान, रखरखाव, और अन्य सभी कार्य महिलाओं द्वारा अत्यंत स्नेह और समर्पण से किए जाते थे। हम गाय को केवल पशु नहीं, बल्कि अपने जैसी जीव और परिवार का अभिन्न अंग मानते आए थे।
परंतु, जब समाज ने महिलाओं के इन कार्यों और सेवाओं को कम आंकना शुरू किया और उन्हें उचित सम्मान नहीं दिया, तो बदलते समय के साथ महिलाओं और लड़कियों को इसकी अनुभूति होने लगी। इस उपेक्षा के कारण उन्होंने धीरे-धीरे कृषि और गौपालन के कार्यों से दूरी बनाना शुरू कर दिया। यह दूरी गौवंश के प्रति उनके ममत्व में कमी नहीं, बल्कि समाज द्वारा उनके श्रम और समर्पण की अनदेखी का परिणाम था।
गोशालाओं की सीमाएं और वास्तविक संरक्षण
देश में हजारों गोशालाएं और पांजरापोलें चल रही हैं, जो गोवंश को बचाने का सराहनीय कार्य कर रही हैं। लेकिन इन संस्थाओं की अपनी सीमाएं हैं; वे केवल अपने आंगन में खड़े गोवंश को ही संभाल सकती हैं। देश में लाखों की संख्या में जो गोवंश सड़कों पर लावारिस भटक रहा है, उसे ये संस्थाएं नहीं बचा सकतीं।
गाय भी नारी के समान है। उसकी देखभाल उसी प्रकार से उसकी गौरी (यानी उसके जैसी नारी) ही कर सकती है, जो गाय की गरिमा और नारीत्व को समझती है। पुरुष कभी भी उस संवेदनशीलता और ममत्व से गाय की देखभाल नहीं कर सकते, जैसा एक नारी करती है। गाय को बचाने के कार्य में जब तक गौरी सम्मिलित नहीं होगी, तब तक हम गाय का वास्तविक संरक्षण नहीं कर सकते। गोशालाओं में बंद गाय केवल एक व्यापारिक पहलू है, जबकि गाय का वास्तविक संरक्षण उसके गोचर (खुले मैदानों) में विचरण में ही है।
कुल मिलाकर, गाय को वास्तविक संरक्षण के लिए गोचर और गौरी दोनों की आवश्यकता है। गोचर गाय को प्राकृतिक वातावरण और पोषण प्रदान करता है, जबकि गौरी उसे ममत्व और स्नेहपूर्ण देखभाल देती है। इन दोनों के बिना गौसंरक्षण अधूरा है।
भारत में गोवंश का दुर्भाग्य – कत्लखाना
भारत में कत्लखानों में जाने वाले गोवंश का सटीक दैनिक और वार्षिक आंकड़ा प्राप्त करना जटिल है, क्योंकि इसमें वैध और अवैध दोनों तरह की कटाई शामिल होती है। हालांकि, विभिन्न रिपोर्टों और अनुमानों के अनुसार:
- दैनिक आंकड़ा: यह अनुमान लगाना कठिन है, लेकिन माना जाता है कि प्रति दिन हजारों की संख्या में गोवंश का वध किया जाता है, जिसमें अवैध कटाई का बड़ा हिस्सा शामिल है।
- वार्षिक आंकड़ा: विभिन्न स्रोतों से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, भारत में सालाना लाखों गोवंश का वध किया जाता है। इनमें से एक बड़ा हिस्सा बूढ़े, बीमार, या अनुपयोगी माने जाने वाले पशुओं का होता है, और एक महत्वपूर्ण संख्या अवैध बूचड़खानों में कटाई की जाती है। सरकारी आंकड़ों में केवल वैध कटाई शामिल होती है, जबकि अवैध कटाई का आंकड़ा इससे कहीं अधिक हो सकता है। कुछ अनुमानों के अनुसार, यह संख्या सालाना 20 से 30 लाख तक या उससे भी अधिक हो सकती है, जिसमें भैंस और अन्य पशु भी शामिल हैं।
यह आंकड़ा देश में गोवंश संरक्षण की तत्काल आवश्यकता को दर्शाता है। गोचरों की कमी और महिलाओं की गौपालन से दूरी, ये दोनों ही कारक इस समस्या को गंभीर बना रहे हैं।






