(डॉ. सुधाकर आशावादी -विनायक फीचर्स)
लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनाव व्यवस्था को बार बार कटघरे में खड़ा करने का प्रयास बिहार चुनावों में भी विफल सिद्ध हुआ। बिहार विधानसभा चुनाव के परिणामों ने सिद्ध कर दिया कि लोकतंत्र में झूठे विमर्श और भ्रामक प्रचार को मतदाता स्वीकार करने के लिए तैयार नही है। चुनाव परिणामों ने उन राजनीतिक दलों को सत्य का दर्पण दिखा दिया, जो यह समझते थे, कि उनके द्वारा स्थापित किया जाने वाला वोट चोरी का अप्रमाणिक विमर्श ही सत्य है। अप्रत्याशित चुनाव परिणामों ने यह भी स्पष्ट कर दिया, कि मतदाता पूर्व की अपेक्षा अधिक जागरूक है तथा वह अकल्पनीय वादों पर विश्वास नहीं करता।
बिहार चुनाव परिणामों ने जाति आधारित वोट बैंक के भरम को भी तोड़ दिया,कि जातियां किसी विशेष राजनीतिक दल की बपौती हैं, यही नहीं उन वंशवादी राजनेताओं को भी जमीनी दर्पण दिखा दिया, जो काल्पनिक बातें करके मनगढंत विमर्श से मतदाताओं को गुमराह करने के लिए किसी भी हद तक अराजकता की स्थिति उत्पन्न कर सकते थे। वस्तुस्थिति यह है, कि बिहार के चुनाव परिणामों ने चुनाव आयोग की विश्वसनीयता और पारदर्शिता को बरक़रार रखा तथा अपने निहित स्वार्थों के लिए देश की चुनाव व्यवस्था को बदनाम करने वाले तत्वों की कलई खोल कर रख दी।
यहाँ इस सत्य को नहीं नाकारा जा सकता, कि हार की खीज सहजता से नहीं मिटाई जा सकती, यदि ऐसा न होता, तो अपनी जमीनी सच्चाई को दरकिनार करते हुए राजनेता पूर्व से ही चुनाव आयोग, चुनाव व्यवस्था को कटघरे में खड़ा न करते। कभी वोट चोरी, कभी ईवीएम में गड़बड़ी, कभी स्लो काउंटिंग, कभी मतदाता सूची में गड़बड़, कभी विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठाकर कुछ राजनीतिक दल निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया में विघ्न डालने का प्रयास न करते।
निसंदेह बिहार विधानसभा चुनाव देश में चुनाव सुधारों की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में मील का पत्थर सिद्ध होगी तथा चुनावों को मनगढ़ंत विमर्श से प्रभावित करने वाले राजनीतिक दलों के प्रति विश्वसनीयता को कम करेगी। ऐसा समझा जाना अपेक्षित है। (विनायक फीचर्स)








