भारत में गाय के गोबर को पारंपरिक रूप से केवल ईंधन (उपले) या खेतों के लिए साधारण खाद के तौर पर ही देखा जाता रहा है. लेकिन अब समय बदल गया है. जो गोबर कल तक सिर्फ ग्रामीण उपयोग की वस्तु था, वह आज एक अहम वैश्विक और घरेलू उत्पाद बन गया है. दुनिया भर में ऑर्गेनिक उत्पादों की बढ़ती मांग और रासायनिक खादों के दुष्प्रभावों के प्रति बढ़ती जागरुकता के बीच, भारतीय गाय के गोबर की मांग तेजी से बढ़ी है. यह भारत के पशुपालकों और नए उद्यमियों के लिए ‘कचरे से कंचन’ बनाने का एक शानदार अवसर बनकर उभरा है.
भारत की विशाल गोबर संपदा
भारत की इस नई अर्थव्यवस्था का आधार यहां की विशाल पशुधन संख्या है. भारत में लगभग 30 करोड़ मवेशी हैं. एक अनुमान के अनुसार, ये मवेशी मिलकर प्रतिदिन लगभग 30 लाख टन गोबर का उत्पादन करते हैं. लंबे समय तक इस विशाल संसाधन का सही उपयोग नहीं हो पाया और यह केवल ईंधन के उपले बनाने तक सीमित था. लेकिन अब, इस ‘गोबर धन’ को सही मायने में राष्ट्रीय धन में बदला जा रहा है.
क्यों बढ़ रही गोबर खाद की मांग?
आज दुनिया भर में जैविक उत्पादों की मांग बढ़ने का एक बड़ा कारण रासायनिक उर्वरकों के गंभीर दुष्प्रभाव हैं. इन रसायनों ने हमारी खेती और स्वास्थ्य को बहुत नुकसान पहुंचाया है रासायनिक खादों के लगातार उपयोग से मिट्टी की प्राकृतिक संरचना को नुकसान पहुंचता है और वह बंजर होने लगती है. यह मिट्टी को अधिक अम्लीय भी बना देते हैं. ये रसायन बारिश के पानी के साथ बहकर नदियों, झीलों और तालाबों में मिल जाते हैं. इससे पानी जहरीला होता है और जलीय जीवन को नुकसान पहुंचता है.
रासायनिक उर्वरकों के अवशेष हमारे भोजन में रह जाते हैं, जिनके सेवन से कैंसर और रक्तचाप जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है. ये खादें मिट्टी में रहने वाले केंचुओं और अन्य फायदेमंद सूक्ष्मजीवों को मार देती हैं, जो असल में मिट्टी को उपजाऊ बनाते हैं.
गोबर वेस्ट’ से ‘वेल्थ’ तक
जैसे पेट्रोल में इथेनॉल मिलाकर उसे बेहतर और स्वच्छ बनाया जा रहा है, ठीक उसी तरह अब गोबर को भी साधारण खाद से आगे बढ़कर ‘वैल्यू- उत्पादों में बदला जा रहा है. यही कारण है कि इसकी घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मांग आसमान छू रही है. गोबर अब सिर्फ उपला नहीं है. इसे कई उन्नत रूपों में तैयार किया जा रहा है. यह गोबर से बनने वाली सबसे लोकप्रिय और उच्च गुणवत्ता वाली खाद है. किसान इसे 7 से 8 रुपये प्रति किलो तक बेचकर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं.
गोबर का उपयोग बायो-गैस प्लांट में ऊर्जा बनाने के लिए किया जा रहा है. गैस निकलने के बाद जो स्लरी (तरल खाद) बचती है, वह भी एक बेहतरीन जैविक उर्वरक होती है. गोबर को गौ-मूत्र और अन्य प्राकृतिक चीजों के साथ मिलाकर ‘जीवामृत’ जैसा शक्तिशाली तरल खाद और जैविक कीटनाशक बनाए जा रहे हैं. अब गोबर का उपयोग सिर्फ खाद तक सीमित नहीं है. इससे अगरबत्ती, मच्छर भगाने वाली कॉइल, गमले, कागज, बायो-प्लास्टिक और निर्माण सामग्री भी बनाई जा रही है.
गोबर का बढ़ता ग्लोबल बाजार
घरेलू मांग के साथ-साथ गोबर का वैश्विक बाजार भी तेजी से बढ़ रहा है. भारत दुनिया में गाय के गोबर का शीर्ष निर्यातक है. साल 2024-25 के आंकड़ों के अनुसार, भारत ने 125 करोड़ रुपये मूल्य के ताजे गोबर और 173.7 करोड़ रुपये मूल्य के गोबर-आधारित उर्वरकों का निर्यात किया. शिपमेंट की संख्या 2025 में भारत से गोबर की 1,328 शिपमेंट भेजी गईं. इस व्यापार में 181 भारतीय निर्यातक शामिल हैं, जो दुनिया भर के 327 खरीदारों को गोबर की आपूर्ति कर रहे हैं.
भारतीय गोबर की मांग दुनिया के कई कोनों में है. भारत के शीर्ष निर्यात गंतव्य मालदीव, संयुक्त राज्य अमेरिका और सिंगापुर हैं. अगर हम गोबर के उपलों (cow dung cake) के खरीदारों की बात करें, तो शीर्ष देश मालदीव, कंबोडिया और वियतनाम हैं. इनके अलावा चीन, नेपाल, ब्राजील, अर्जेंटीना, कुवैत, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे देश भी भारतीय गोबर के प्रमुख खरीदारों में शामिल हैं.








