अब्दुल अहद सIबरी और असद सIबरी भारतीय शास्त्रीय संगीत की उस गौरवशाली परंपरा के प्रतिनिधि हैं जिसने सरंगी को केवल एक वाद्ययंत्र नहीं, बल्कि आत्मा की आवाज़ बना दिया है। वे मोरादाबाद घराने की आठवीं पीढ़ी से संबंध रखते हैं—एक ऐसा घराना जिसने चार शताब्दियों से भी अधिक समय तक संगीत की साधना और परंपरा को जीवित रखा है। यह वंश परंपरा अपने आप में विश्व संगीत के इतिहास में अनोखी है, क्योंकि इतने लंबे समय तक किसी एक परिवार ने एक ही वाद्य को इतनी निष्ठा और उत्कृष्टता के साथ संरक्षित और संवर्धित किया हो, यह विरल ही है।

इन दोनों का जन्म ऐसे घराने में हुआ जहाँ संगीत जीवन का हिस्सा नहीं, बल्कि जीवन स्वयं है। उनके दादा, सIरंगी सम्राट उस्ताद सIबरी ख़ाँ, ने भारतीय शास्त्रीय संगीत को विश्व पटल पर नई पहचान दिलाई। उन्होंने सरंगी को उस ऊँचाई पर पहुँचाया जहाँ इसे न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया में भारतीय संस्कृति का प्रतीक माना जाने लगा। दूसरी ओर, उनके पिता उस्ताद कमाल सIबरी, जिन्हें आज “सIरंगी सुल्तान” भी कहा जाता है, ने इस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए सIरंगी को आधुनिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया और उसमें अनेक नवाचार कर उसकी सीमाओं को और विस्तृत किया।


अब्दुल अहद और असद, इस संगीत-मय वातावरण में बचपन से ही रचे-बसे हैं। सरंगी की मधुर ध्वनियाँ उनके जीवन का हिस्सा रही हैं। वे जब छोटे थे तब से ही सुर, ताल और राग उनके दैनिक जीवन के अभिन्न अंग बन गए। उनके लिए संगीत केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि साधना, अनुशासन और आत्मिक शुद्धि का साधन है। पिता के मार्गदर्शन में वे कठोर अभ्यास और रियाज़ करते हैं, जिससे उनमें न केवल वादन की दक्षता आती है, बल्कि संगीत का गहरा भाव भी विकसित होता है।
इन दोनों में अपने पूर्वजों की विरासत को आगे बढ़ाने का जोश और जिम्मेदारी का भाव स्पष्ट झलकता है। वे समझते हैं कि सIरंगी केवल एक वाद्य नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की आत्मा का स्वरूप है। इसलिए वे परंपरा के सम्मान के साथ-साथ इसे आधुनिक पीढ़ी के लिए प्रासंगिक बनाने की दिशा में भी अग्रसर हैं। उनके दृष्टिकोण में यह विश्वास निहित है कि यदि शास्त्रीय संगीत को नई पीढ़ी तक पहुँचाना है तो उसे समकालीन प्रयोगों और नई तकनीकों से भी जोड़ना होगा।
मोरादाबाद घराने की यह परंपरा केवल वाद्य का ज्ञान ही नहीं, बल्कि जीवन-दर्शन भी सिखाती है। अब्दुल अहद और असद इस मशाल को थामे हुए हैं जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी साधना, ज्ञान और संगीत की रोशनी फैलाती रही है। उनकी उपस्थिति यह सुनिश्चित करती है कि सरंगी की आत्मीय और गहन ध्वनि, जो कभी उस्ताद सबरी ख़ाँ और फिर उस्ताद कमाल सबरी की उंगलियों से विश्वभर में गूँजी, आने वाले समय में भी उतनी ही जीवंत और प्रभावशाली बनी रहेगी।
इस प्रकार, अब्दुल अहद और असद केवल अपने घराने के उत्तराधिकारी नहीं, बल्कि भारतीय शास्त्रीय संगीत की उस अमूल्य विरासत के संरक्षक और भविष्य के धरोहर-वाहक हैं। उनकी साधना और संकल्प से आने वाली पीढ़ियाँ प्रेरणा लेंगी, और सIरंगी की ध्वनि सदा अमर बनी रहेगी।

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