Chandrayaan-3 News: चंद्रयान-3 के चांद के साउथ पोल पर उतरने के अगले दिन रोवर प्रज्ञान ने काम शुरू कर दिया। वह चांद की सतह पर चहलकदमी कर रहा है। लैंडर विक्रम के सभी पेलोड्स का स्विच ON कर दिया गया है। ISRO ने कहा कि लैंडर विक्रम के तीन पेलोड्स- ILSA (Instrument for Lunar Seismic Activity), RAMBHA (Radio Anatomy of Moon Bound Hypersensitive Ionosphere and Atmosphere) और ChaSTE (Chandra’s Surface Thermophysical Experiment) काम करने लगे हैं। चंद्रयान-3 मिशन की सभी गतिविधियां प्‍लान के मुताबिक हो रही हैं। चांद पर मौजूद चंद्रयान-3 के सारे सिस्टम ‘नॉर्मल’ हैं। चंद्रयान-3 के बारे में 5 बडे अपडेट्स देखिए।
चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर ने चंद्रयान-3 के लैंडर को देख लिया है। चंद्रयान-2 का Orbiter High-Resolution Camera (OHRC) अभी चांद के आसपास मौजूद सबसे अच्‍छा कैमरा है।

चंद्रयान-3 मिशन के लैंडर ‘विक्रम’ ने चंद्रमा की सतह पर उतरने के लिए अपेक्षाकृत एक समतल क्षेत्र को चुना। इसरो ने बताया कि लैंडर विक्रम के कैमरे से ली गई तस्वीरों से यह पता चला है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने कहा कि विक्रम के सफलतापूर्वक चंद्रमा पर पहुंचने के तुरंत बाद ‘लैंडिंग इमेजर कैमरा’ ने ये तस्वीरें कैद कीं। तस्वीरें चंद्रयान-3 के लैंडिंग स्थल का एक हिस्सा दिखाती हैं। उसने कहा कि लैंडर का एक पैर और उसके साथ की परछाई भी दिखाई दी।

वैज्ञानिकों का कहना है कि चंद्रयान-3 की लैंडिंग के बाद अब सबसे अहम चुनौती चांद के दुर्गम दक्षिणी ध्रुव में पानी की मौजूदगी की संभावना की पुष्टि और खानिज-धातुओं का पता लगाने की होगी। वैज्ञानिकों का मानना है कि इन स्टडी से वहां जीवन की संभावना और सौरमंडल के बनने के रहस्यों से परदा हटाने में भी मदद मिलेगी।
IIT गुवाहाटी के फिजिक्स विभाग के प्रफेसर शांतब्रत दास ने बताया, ‘चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव बेहद दुर्गम इलाका है। इसमें 30 किलोमीटर तक गहरी घाटियां और 6-7 किलोमीटर तक ऊंचे पहाड़ हैं। इस हिस्से में कई इलाके ऐसे हैं जहां सूर्य की किरणें पड़ी ही नहीं हैं । ऐसे में यहां जमे हुए पानी के अहम भंडार हो सकते हैं।’
प्रफेसर दास ने बताया कि रोवर पर दो पेलोड लगे हैं। इसमें पहला ‘लेजर इंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप’ है जो चांद की सतह पर मौजूद रसायनों की मात्रा की स्टडी के साथ ही खनिजों की खोज करेगा। दूसरा पेलोड ‘अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर’ है जो तत्वों की बनावट का जांचेगा। मैग्नीशियम, अल्यूमिनियम, सिलिकान, पोटैशियम, कैल्शियम, टिन, लोहे के बारे में पता लगाएगा।


चांद पृथ्वी के बाद बना है, ऐसे में वहां भारी धातुओं की मौजूदगी की मात्रा स्टडी का विषय होगी। पुणे के इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स के वैज्ञानिक प्रफेसर दुर्गेश त्रिपाठी ने बताया कि स्टडी से सौरमंडल बनने से जुड़े रहस्यों को जानने में मदद मिलेगी। अगर चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी का पता चलता है तो इसमें से हाइड्रोजन-ऑक्सिजन के रूप में अलग किया जा सकता है।
IIT जोधुपर के प्रफेसर डॉ. अरुण कुमार ने बताया, ‘इस अभियान के तहत चंद्रमा की सतह पर भूकंपीय गतिविधि का पता लगाने का प्रयास किया जाएगा। इसके अलावा, इलैक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों से जुड़ी स्टडी भी किया जाएगा।’ (पीटीआई)​

इसरो ने ट्वीट कर बताया कि चंद्रयान-3 लैंडर और मॉक्स-आईएसटीआरएसी, बेंगलुरु के बीच कम्युनिकेशन लिंक स्थापित हो गया है। इससे पहले इसरो ने कहा था कि चंद्रयान-3 के लैंडर ने चंद्रयान-2 मिशन के ऑर्बिटर के साथ संचार संपर्क स्थापित किया है, जो 2019 से चंद्रमा का चक्कर लगा रहा है। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ने यह भी कहा कि मिशन ऑपरेशंस कॉम्प्लेक्स के पास अब लैंडर के साथ कम्युनिकेशन के लिए ज्यादा रूट्स हैं। दूसरे शब्दों में समझें तो चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर मौजूदा लैंडर के साथ इसरो के लिए बैकअप कम्युनिकेशन पैनल होगा।

Previous articleअखिल भारतीय अग्निशिखा मंच द्वारा आयोजित ‘आजादी का महोत्सव’ पर कवि सम्मेलन संपन्न
Next articleहाथ के इशारे से जिनपिंग से क्या कह रहे थे PM मोदी

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here