डॉ प्रगति पटेलडॉ आदित्य मिश्राडॉ आनंद जैनडॉ दीपिका डी सीजरडॉ पूर्णिमा सिंहडॉ अनिल गट्टानीडॉ संजू मंडल एवं डॉ महावेश हिरा खान ,पशु शरीर क्रिया विज्ञान एवं जैव रसायन विभाग पशुचिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय, जबलपुर

 – Dr . Rajesh Singh 

भारत एक कृषि प्रधान देश है और पशुपालन क्षेत्र इसका एक अभिन्न अंग है। पशुधन को आम तौर पर ग्रामीण आजीविका के लिए एक प्रमुख संपत्ति माना जाता है। ग्रामीण महिलाएं देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। साथ ही, वे एक उत्पादक की भूमिका भी निभाती हैं।

महिलाओ का योगदान पशुपालन क्षेत्र में सराहनीय है। गरीब परिवारों में पशुपालन आय का एक प्रमुख स्रोत है, जो विशेषकर गरीब एवं भूमिहीन महिलाओं को आय का साधन उपलब्ध कराता है। महिलाएं घर का सब कार्य करते हुए भी गाय, बकरी, भेड़ ,सूअर ,मुर्गी बत्तख, खरगोश पालन आदि का कार्य आसानी से कर सकती हैं। महिलाओं में निर्णय कौशल का विकास करके एवं उन्हें पशुपालन के तौर पर पहचान देकर उनके आर्थिक एवं सामाजिक विकास का रास्ता आसान किया जा सकता है। खाद्य सुरक्षा एवं पारिवारिक विकास में महिलाओं में तकनीकी कौशल का विकास करके एवं आय के साधनों में वृद्धि करके खाद्य सुरक्षा को और मजबूत किया जा सकता है। पशुपालन में नवीन तकनीकों का विकास करने की आवश्यकता है जिनकी जरूरत महिलाओं को है जो उनके कार्य के बोझ को कम करें, उत्पादकता में वृद्धि करें एवं अधिक आय का साधन मुहैया कराएं।

महिलाएं पशुपालन के विभिन्न कार्यों जैसे पशुओं की देखभाल एवं खानपान, उत्पादों की बिक्री आदि में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। पशुओं के स्वामित्व विशेषकर बकरी, भेड़, मुर्गी आदि पर महिलाओं का अधिकतर अधिकार होता है। इसके विपरीत जमीन, पूंजी एवं ज्ञान के मामलों में पुरुषों का वर्चस्व होता है। अतः महिला सशक्तिकरण एक व्यवहारिक आवश्यकता है जिससे कि उनकी पहुंच तकनीकों और ज्ञान के क्षेत्र में अधिक सुगम हो सके। इसके दूरगामी प्रभाव के रूप में उनकी सामाजिक अवस्था में सकारात्मक सुधार होगा। आर्थिक सामाजिक व्यवस्था, संस्थानिक एवं नीतिगत फैसले भी कार्यकलापों एवं जिम्मेदारियों को प्रभावित करते हैं। विभिन्न कार्यों में स्त्री पुरुष की भागीदारी एवं संसाधनों का स्वामित्व विभिन्न समाज एवं क्षेत्र में अलग अलग होता है। सामाजिक, नीतिगत एवं संस्थानिक व्यवस्थाएं अक्सर महिलाओं के उत्थान में बाधा उत्पन्न करती हैं जिन्हें दूर करने की आवश्यकता है। इन बाधाओं को यदि दूर कर दिया जाए तो महिलाएं पशुपालन द्वारा आर्थिक रूप से स्वावलंबी बन सकेंगी।

महिलाओ की पशुपालन में भूमिका:

भारत में पशुधन उत्पादन काफी हद तक महिलाओं के हाथों में है। वास्तव में पशुपालन नारीकृत हो रहा है। पशुओं की खेती की अधिकांश गतिविधियाँ जैसे चारा संग्रह, पानी और स्वास्थ्य देखभाल, प्रबंधन, दूध देने और घरेलू स्तर पर प्रसंस्करण, मूल्य संवर्धन और विपणन महिलाओं द्वारा किया जाता है। उनकी काफी भागीदारी और योगदान के बावजूद, महत्वपूर्ण लैंगिक असमानताएँ, प्रौद्योगिकी, ऋण, सूचना, इनपुट और सेवाओं की जानकारी न होने की बजह से महिलाये काफी समयस्याओ का सामना कर रही हैं। पशुधन उत्पादों की तेजी से बढ़ती मांग महिलाओं के सशक्तीकरण के अवसर पैदा करती है। लगभग 70 मिलियन ग्रामीण परिवार पशुधन के मालिक हैं। पशुधन क्षेत्र के सतत विकास से महिलाओं का अधिक समावेशी विकास और सशक्तिकरण होगा। एक पशुधन उत्पादन प्रणाली के भीतर महिलाओं की विशिष्ट भूमिका एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में भिन्न होती है, और पुरुषों और महिलाओं के बीच पशुधन के स्वामित्व का वितरण सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक कारकों से दृढ़ता से संबंधित है। महिलाएं आमतौर पर दूध देने, प्रसंस्करण और दूध उत्पादों को बेचने, चारा और पानी उपलब्ध कराने, नवजात मेमनों और बीमार जानवरों की देखभाल करने के लिए जिम्मेदार होती हैं।

पशुपालन के क्षेत्र में स्त्री एवं पुरुष की आवश्यकता एवं रूचि अलग-अलग होती है। इस क्षेत्र में वे अवसर एवं समस्याओं का निराकरण अलग अलग तरीके से करते हैं। पशु एवं पशु उत्पादों की बिक्री तकनीकी जानकारी हासिल करना, सूखा, बाढ़, बीमारियों से लड़ने के तरीके इत्यादि में स्त्री पुरुष का व्यवहार समान नहीं होता है। पशुपालन में महिला सशक्तिकरण निम्नलिखित तथ्यों पर निर्भर करता है:

पशु उत्पादन के प्रकारपशु उत्पादन की विभिन्न प्रणालियों में स्त्री की भागीदारी अलग-अलग होती है। पशुओं की नस्ल, कृषि पशुपालन के संबंध खानपान व्यवस्था प्राकृतिक संसाधनों की गुणवत्ता एवं उपलब्धता, गोचर भूमि की उपलब्धता आदि भी पशुपालन व्यवस्था में स्त्री पुरुष के योगदान का अध्ययन करते समय हमें सामाजिक व्यवस्था रहन-सहन के तरीके विभिन्न पारिवारिक गतिविधियों मौसमी विस्थापन आदि का भी ध्यान रखना चाहिए। जिन परिवारों में महिलाएं बकरी भेड़ की देखभाल करती हैं उन्हें बच्चे भी अक्सर अपना योगदान देते हैं। छोटे स्तर पर मुर्गी पालन भी ग्रामीण महिलाओं के लिए आय एवं रोजगार का एक महत्वपूर्ण साधन है जिससे परिवार के सदस्यों को पौष्टिक भोजन जैसे मांस और अंडे की आपूर्ति होती है।

Previous articleChhindwara – गौ-ग्रास निकालने की परंपरा को लुप्त और सुप्त न होने दें : स्वामी अखिलेश्वारनंद गिरी
Next articleकेदारनाथ में हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त, छह लोगों की मौत की सूचना, रेस्‍क्‍यू शुरू

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here