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बेकार गोबर बना सोना

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हजारीबाग: झारखंड में हजारीबाग जिले की एक गौशाला इन दिनों तेजी से आत्मनिर्भरता की दिशा में बढ़ने को लेकर चर्चा में है. यहां रह रही 500 से अधिक गाय की देखभाल का खर्च अब गौशाला खुद अपने संसाधनों से पूरा करने लगी है. पहले जहां चारे और देखभाल के लिए दान पर निर्भरता अधिक थी, वहीं, अब गायों से मिलने वाले संसाधनो खासकर जैविक खाद तैयार कर बिक्री से ही गौशाला का पूरा खर्च निकाला जा रहा है. इससे न केवल गौशाला आर्थिक रूप से मजबूत हो रही है. बल्कि इसका सीधा लाभ जिले के किसानों और आम लोगों को भी मिल रहा है.
मौजूदा समय में हजारीबाग गौशाला में 500 गाएं हैं, जिन्हें सड़क से या विभिन्न परिस्थितियों में रेस्क्यू कर लाया गया है. इतने बड़े स्तर पर गौ-सेवा चलाना आसान नहीं है. इसलिए गौशाला कमेटी ने एक प्रभावी मॉडल तैयार किया है. जिसमें गायों के द्वारा दिए गए गोबर से जैविक खाद तैयार किया जा रहा है और इसी स्थानीय बाजार से लेकर स्थानीय किसानों को बेचा जा रहा है और इसी कमाई से अब गौशाला की आमदनी बढ़ाई जा रही है.
कमेटी के सदस्य मनोज गुप्ता ने बताया कि जैविक खाद की बढ़ती मांग ने गौशाला को आर्थिक सहारा दिया है. पहले के समय में गाय के द्वारा दिए गए गोबर को ऐसे ही बाहर फेंक दिया जाता था या किसी को ओने पौने दाम पर बेचा जाता था, लेकिन वह मॉडल प्रभावित नहीं था, जिस कारण से यहां पर गोबर से जैविक खाद बनाने की प्रक्रिया शुरू की गई. आज यह मॉडल सफल हो चुका है. गौशाला के आमदनी का प्रमुख हिस्सा अब जैविक खाद है.
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