हिंदू राष्ट्रवाद को आकार देने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के 100 वर्ष पूरे हो गए हैं। महज डेढ़ दर्जन लोगों की पहली शाखा के साथ शुरुआत करने वाला यह संगठन आज देश में सत्ता को मजबूती देने वाली प्रमुख वैचारिक ताकत बन चुका है। संगठन भारत के लोगों में हिंदुत्व की भावना जागृत करने के साथ ही शिक्षा और समाजसेवा में भी अहम योगदान दे रहा है। 100 साल की इस यात्रा में नेतृत्व करने वाली छह हस्तियां ऐसी रही हैं, जिन्हें संघ में सर्वोच्च माना जाता है। यानी सरसंघचालक। इन सरसंघचालकों के बारे में संक्षेप में जानिए
डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार
- 27 सितंबर, 1925 को नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की। वह 1925-1940 तक इसके सरसंघचालक रहे। वह पेशे से चिकित्सक थे और डॉक्टरजी के नाम से जाने जाते थे। 1920 के दशक के आरंभ में वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य थे। महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में भागीदार होने के कारण जेल में भी रहे।
- माधव सदाशिव गोलवलकर
- 1940-1973 तक संघ के सरसंघचालक रहे। इसी कालखंड में नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की हत्या कर दी थी, जिसके बाद संघ पर प्रतिबंध लग गया।
मधुकर दत्तात्रेय देवरस
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- 1973-1994 तक संघ प्रमुख रहे। 12 वर्ष की उम्र में संघ से जुड़े थे। उन्होंने आपातकाल के खिलाफ जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में संघ को सीधे तौर पर शामिल किया।
राजेंद्र सिंह उर्फ रज्जू भैया
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- 1994 से 2000 तक संघ प्रमुख रहे। संघ के एकमात्र गैर-ब्राह्मण प्रमुख। इलाहाबाद विवि में पढ़ाई के दौरान संघ के संपर्क में आए और पूर्णकालिक प्रचारक बने।
केएस सुदर्शन
- वर्ष 2000 में संघ प्रमुख बने। कर्नाटक के रहने वाले सुदर्शन ने 2009 में खराब स्वास्थ्य के चलते पद छोड़ा।
मोहन भागवत
- साल 2009 से संघ प्रमुख। महाराष्ट्र के अकोला स्थित पंजाबराव कृषि विश्वविद्यालय से पशु चिकित्सा विज्ञान और पशुपालन में स्नातक हैं। संघ प्रचारक बनने के लिए उन्होंने अपनी स्नातकोत्तर की पढ़ाई छोड़ दी।
अहंकार के खिलाफ
संघ व भाजपा के बीच सहज संवाद और समन्वय के बावजूद भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पिछले साल कहा था कि पार्टी अब उस समय से आगे बढ़ चुकी है जब उसे संघ की जरूरत नहीं है। इस पर भागवत ने भी जवाब दिया था। उन्होंने कहा था कि जनता की सेवा करने वालों में अहंकार नहीं होना चाहिए।