“हौसलों की मिसाल: अभिनेत्री शिखा मल्होत्रा की कहानी : रूपहले पर्दे की नायिका, ज़िंदगी की योद्धा”
मुंबई की चकाचौंध में जब एक चेहरा अपनी चमक खुद गढ़ता है, तब वह सिर्फ कलाकार नहीं, प्रेरणा बन जाता है। ऐसी ही हैं अभिनेत्री शिखा मल्होत्रा, जिनकी जीवनयात्रा एक फिल्मी कहानी से कहीं ज़्यादा दिल छू लेने वाली हकीकत है।
शिखा ने यशराज फिल्म्स की ‘फैन’ में शाहरुख खान के साथ रिपोर्टर की छोटी-सी भूमिका से शुरुआत की, लेकिन इस छोटे दृश्य में उनकी प्रतिभा इतनी बड़ी थी कि खुद किंग खान ने उन्हें गले लगाकर सराहा।इस सीन को शाहरुख खान मॉनिटर कर रहे थे और वे शिखा के पास जाकर शिखा को प्रोत्साहित किये। उस एक आलिंगन में शायद हजारों सपनों की मेहनत और पहचान छुपी थी। यह बेहद गर्व भरा पल रहा।
इसके बाद उन्होंने दर्शकों को झकझोर कर रख देने वाली फिल्म ‘कांचली’ में मुख्य भूमिका निभाई। यह कोई आम फिल्म नहीं थी, यह एक साहसिक स्त्री की अंतर्वेदना और विद्रोह की दास्तान थी। उस रूढ़ियों से भरी दुनिया में जहां एक स्त्री को सिर्फ सहने की आदत सिखाई जाती है, वहीं शिखा की ‘कांचली’ उस आदत को तोड़ती है।
शिखा केवल एक अभिनेत्री नहीं हैं,वह एक क्लासिकल सिंगर, कथक डांसर, बॉलीवुड परफॉर्मर और एक प्रशिक्षित नर्स भी हैं। एक ऐसा व्यक्तित्व जिसमें कला और सेवा दोनों सांस लेते हैं। जब पूरी दुनिया महामारी के साए में सहमी थी, शिखा ने अपनी चकाचौंध भरी दुनिया को छोड़ अस्पताल की सफेद वर्दी पहन ली, वो भी बिना किसी शुल्क के, सिर्फ मानवता के लिए। यह सेवा नहीं, संकल्प था, एक जीवंत अभिनेत्री का सच्चा किरदार।
लेकिन कहानी यहीं नहीं रुकती। वक्त ने उनकी हिम्मत को फिर से परखा, चेहरे पर पैरालिसिस ने एक पल को उनके सपनों को जकड़ लिया, मानो जैसे कोई चित्रकार की तूलिका से रंग छीन ले। मगर शिखा ने न हार मानी, न चेहरे की परिभाषा को अपनी पहचान बनने दिया। उन्होंने उस अंधेरे से फिर उजाला रचा और एक नई वापसी, एक नई शुरुआत की।
अब एक बार फिर, ‘कांचली’ थिएटरों में वापसी कर रही है। यूट्यूब पर लाखों दिलों तक पहुँचने के बाद अब यह फिल्म बड़े पर्दे पर अपने असली जादू के साथ लौट रही है। शिखा का कहना है, “जब ये फिल्म बनी थी, तब ये समय से आगे थी। अब समय इस फिल्म को देखने लायक हो चुका है।”
जल्द ही वह अभिनेता हितेन तेजवानी के साथ फिल्म ‘मानो या ना मानो’ में भी नज़र आएंगी। इसके अलावा तापसी पन्नू की ‘रनिंग शादी’, तमिल फिल्म ‘सेंथेनल’, तेलुगु फिल्म ‘जयंती’, और पंजाबी फिल्म ‘लकी कबूतर’ में भी उन्होंने अपनी बहुपक्षीय प्रतिभा से अभिनय को नई ऊंचाइयाँ दी हैं।
शिखा मल्होत्रा की कहानी सिर्फ एक कलाकार की नहीं, एक योद्धा, सेविका और असल जिंदगी की नायिका की है — जो हर बाधा को पार कर अपने सपनों की रोशनी को फिर से जलाना जानती है।
कांचली की तरह ही शिखा भी एक प्रतीक हैं — उस स्त्री की जो सहती नहीं, सवाल करती है। जो गिरती नहीं, बदलती है। और जो अभिनय नहीं, आत्मा से जीती है।